Monday, March 1, 2010

मीरा का स्वर लता दीदी जैसा ही होगा.

















लता दीदी का कला कर्म और व्यक्तित्व श्रीराम,कृष्ण,मीरा,तुलसी,सूरदास,ग़ालिब,शिवाजी या ज्ञानेश्वर की तरह कालातीत है. निसंदेह हम पाँचों भाई बहनों को संगीत की विरासत पिता से मिली है लेकिन शायद दीदी ही हैं जिन्हें संगीत का दैवीय प्रसाद मिला है और इसीलिये सबसे विलक्षण हैं.वे विशिष्ट हैं इसका भान मुझे बचपन से है .

ये बात जानेमाने संगीत निर्देशक पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर ने पिछले दिनों अपने इन्दौर प्रवास के दौरान हुई चर्चा में कही. सनद रहे ह्रदयनाथ जी महज़ एक संगीतकार नहीं भारतीय दर्शन और चिंतन के अनोखे टीकाकार भी हैं. उनसे बात करने पर यह बात समझ में आ जाती है कि चित्रपट,सुगम या शास्त्रीय संगीत में सिध्दि हासिल करने के लिये सिर्फ़ सा रे ग म प से काम नहीं होता आपको अपने पूरे परिवेश और संस्कार को आत्मसात करना पड़ता है.


पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर ने बताया की दीगर कवियों जैसे ग़ालिब को मेहंदी हसन साहब या कुंदनलाल सहगल ने भी बहुत सुन्दर गाया है लेकिन मीरा को रेकॉर्ड करते समय मुझे ये ख़ास इलहाम हुआ कि दीदी ने जो गाया है मीरा भी वैसा ही गाती होगी.क्योंकि दीदी की तन्मयता और उसकी रूहानी तबियत इस एलबम(चाला वाही देस) में बड़े ख़ास अंदाज़ में अभिव्यक्त हुई है. ये पूछने पर कि आप तो दीदी के प्रशसंक और मुरीद हैं ही क्या कभी दीदी से भी आपको अपने काम के लिये शाबासी मिली ? पण्डितजी ने बहुत प्यारी बात कही;वे बोले हाँ मीरा एलबम करते समय ही दीदी ने कहा था बाळ ये तेरा सबसे उम्दा काम है और अब इसके बाद और किसी के लिये मीरा गाना ज़रा मुश्किल ही होगा मेरे लिये.सच उन्होंने मेरे एलबम के बाद कभी मीरा को नहीं गाया. मैं समझता हूँ मेरी संगीत यात्रा के लिये सबसे बड़ा पुरस्कार है दीदी की यह बात गुलज़ार की फ़िल्म में भी न गाने की असली वजह यही थी कि दीदी किसी भी तरह को मीरा को दोहराना नहीं चाहतीं थीं.

अपने उस्ताद अमीर ख़ाँ साहब के गंडाबंद शाग़िर्द रहे ह्रदयनाथजी ने बताया कि चूंकि दीदी की व्यस्तताएँ बहुत ज़्यादा थी अत:मुझे एक जानकार से सीखना आवश्यक लगा,अमीर ख़ाँ साहब का गाना हमेशा मन को भाता था सो उनसे सीखा और बाद में जहाँ जो जो भी अच्छा सुनाई दिया उसमें भी शास्त्रीय संगीत की बारीक़ियों को समजने की कोशिश की. ह्रदयनाथजी ने ये भी बताया कि संगीतकार सलिल चौधरी उनके चित्रपट संगीत विधा के सच्चे गुरू थे. उनका सहयोगी बनकर काम करने की बड़ी प्यारी यादें मेरे ज़हन कें समाई हुईं है. उनमें भारतीय और पाश्चात्य संगीत को मिलाने की अदभुत क्षमता थी,कविता की अदभुत समझ भी और फ़िल्म माध्यम की बेजोड़ सूझ थी. मज़े की बात यह है कि सलिल दा की कई बांग्ला रचनाओं के मराठी अनुवाद को मैंने रेकॉर्ड किया और मेरी कई मराठी रचनाओं को सलिल दा ने बांग्ला में . डोलकर डोलकर का बांग्ला गीत भी ख़ासा लोकप्रिय है.सलिल दा के बाद संगीतकार सज्जाद,जयदेव और मदनमोहन का संगीत मुझे हमेशा प्रभावित करता आया है.

ह्रदयनाथ मंगेशकर संगीत के अनूठे साधक है. उनकी तबियत में एक सूफ़ियाना रंग है, वे अपनी शर्तों से संगीत रचने वाले निर्देशक हैं. उन्हें इस बात की कभी परवाह नहीं रही कि जो उन्होंने किया है वह व्यावसायिक रूप से कितना क़ामयाब है,उनकी चिंता है संगीत का सुरीलापन,उसकी रचनात्मकता और रूह क़ायम रहे.जिस संगीत में भारत की आत्मा दीखती है वह बजता रहे...सुनने वालों के ह्रदय में ताज़िन्दगी