मैं मूलत: इश्क़ की
दुनिया का आदमी हूँ जिसे ग्लैमर,प्रचार,समीक्षाओं और आलोचनाओं का पढ़ने का वक़्त ही नहीं.मैं
सादगी से रहता हूँ,वैसा ही खाना पसंद करता हूँ,सादा बोलता हूँ और ज़ाहिर है वैसा ही
लिखता हूँ.जिन लोगों ने हमारी तहज़ीब और ज़ुबानों
का बँटवारा किया है वे जानतेे ही नहीं कि उर्दू और हिन्दी एक ही दरिया से निकलने
वाले दो धारे हैं.
मेरी ये बातचीत पाकिस्तान के मशहूर शाइर अब्बास ताबिश साहब से हुई. .वे शाइरी पसन्द करने वाले मेरे शहर के एक मजमे में शिरकत के लिये इन्दौर तशरीफ़ लाए हैं.अब्बास
ताबिश इंटरनेशनल मुशाइरों के बेहद संजीदा शाइरों में शुमार किये जाते हैं और वे शराब-शबाब
से हटकर रिश्तों,परिवेश और इंसानी मसाइल पर बहुत सादा ज़ुबान में अपनी बात कहते हैं.मंचीय
अदाकारी और गलेबाज़ी से हटकर उनकी कहन में एक करिश्माई सॉफ़्टनेस है जो सीधे दिल में
उतरती है.वे हिन्दुस्तान में बार-बार आते हैं और यहाँ सुनाना भी पसंद करते हैं. इसके
बारे में उनका कहना है ग़ज़ल की जड़ें तो हिन्दुस्तान में ही हैं.ग़ालिब,मीर,दाग़,आतिश सब
यहीं से तो आते हैं,मेरा आना भी एक तरह से ग़ज़ल की अज़ीम शख़्सियतों के आस्तानों पर सर
झुकाना है . क्या कभी कोई ग़ज़ल एलबम मुकम्मल हुआ है,पूछने पर अब्बास ताबिश ने बताया
मशहूर गुलूकार परवेज़ मेहंदी के साथ बात चल ही रही थी और उनका देहावसान हो गया. अब नदीम
अब्बास जैसे युवा गायक एक एलबम में कुछ ग़ज़लें कम्पोज़ कर रहे हैं.
ग़ज़ल के शैदाई इस सच
को जानकर वाक़ई ख़ुश होंगे के माँ के नाम से की जाने वाली बहुतेरी शाइरी की ओर सामइन
का विशेष ध्यान 1997 में डॉ.बशीर बद्र ने खींचा था जब वे पाकिस्तान से अब्बास ताबिश
का एक मतला अपने साथ लाए थे जो कुछ यूँ था...
”एक मुद्दत से मेरी
माँ नहीं सोई ताबिश
मैंने एक बार कहा था
मुझे डर लगता है .
वे बहुत ख़ाक़सारी (विनम्रता)
से कुबूल करते हैं कि इस शे’र ने उन्हें दुनिया भर में एक जाना पहचाना नाम बना दिया.
शायरी और मुशायरों के बदलते रंग और उसमें इवेंट मैनेजमेंट के ग्लैमर के बारे में अब्बास
भाई का कहना था कि वक़्त सबसे बड़ी ताक़त है.हर दस बरस में कुछ नाम शायरी के मेयार पर
दस्तक देते हैं लेकिन वक़्त ही तय करता है कि उनका मुस्तक़बिल(भविष्य) क्या होगा.वे मानते
हैं कि शाइर को अपनी गरिमा पर क़ायम रहना चाहिये. एक बार वह सुनने वालों की शर्त पर
नीचे आया तो फिर ढलान ही ढलान है. शाइर की शिनाख़्त उसकी शायरी से ही होती है. मुशायरे
और किताबों से आगे जाकर जो शे’र सफ़र करे वही खरा होता है. शाइरी को प्रमोट नहीं किया
जा सकता है. बात में दम हो तो वह सरहदों से आज़ाद होकर सैर करती है.उसे वीज़ा नहीं लगता.
अब्बास ताबिश के ने सुनाए ये ख़ास अशआर
ये हम जो शहर के पास अपना गाँव बेचते
हैं
यक़ीन कीजिये हाथ और पाँव बेचते हैं
ये तुम जो मुझसे मुहब्बत का मोल पूछते
हो
तुम्हें ये किसने कहा पेड़ छाँव बेचते
हैं