Friday, September 11, 2009

कभी घाटे का सौदा नहीं होता अन्नू कपूर से मिलना !


ये एक ऐसा शख़्स है जिसकी रूह में संगीत ख़ून की तरह बहता रहता है. नाटे क़द का ये इंसान अदाकारी,एंकरिंग और संगीत के हुनर का एक ऐसा सितारा है जिसे आम आदमी अपना सा समझता है . शायद यही ख़ूबी अन्नू कपूर को एक सामान्य कलाकार की ह्द से उठा कर विशिष्ट बना देती है. बना देती है उसे एक लोक-नायक जिसे कबीर,ख़ुसरो,ओशो,नीरज की बानियाँ मुँहज़ुबानी याद हैं. अन्नू भाई की ख़ूबी यह है कि वे अच्छी बात कहने का मौक़ा नहीं चूकते. यदि आप उनकी महफिल हैं तो बिला शक उन्हीं से रूबरू हैं. अगर मामला संगीत का हो तो वे किसी बड़े से बड़े आयोजक की परवाह किये बग़ैर किसी बदतमीज़ी और बदइंतज़ामी पर तंज़ करने या उसे फ़टकारने से नहीं बचते.

9 सितम्बर को अन्नू कपूर मेरे शहर इन्दौर में थे. यहाँ हमारी चौपाल नाम की संस्था द्वारा जुनून सात सुरों का नाम से एक संगीत प्रतिस्पर्धा का आयोजन था और अन्नू भाई बतौर प्रस्तोता तो इस शो में थे ही लेकिन उसके पहले उन्होंने स्थानीय निर्णायकों द्वारा 400 गायक-गायिकाओं में से चुनकर दिये गए 100 प्रतिस्पर्धियों को सुना.फिर इन 100 में से 24 ऐसी आवाज़े चुनीं जो एक शो के रूप में फ़ायनल प्रतिस्पर्धा में शरीक हो सकें.
सौ कलाकारों को जिस धीरज और तन्मयता से अन्नूभाई ने सुना वह अदभुत था. वे अपने साथ मुम्बई से आए साज़िन्दों के साथ इन सौ आवाज़ों की ज़बरदस्त मशक्क़त करवाते रहे. किसी को सुनते तो सुझाते आपने सुर थोड़ा ऊँचा ले लिया है सुर बदलिये,आपकी आवाज़ को ये गीत सूट नहीं करेगा...ऐसा करिये आशा जी का नहीं गीता दत्त का कोई गीत ट्राय कीजिये. यदि किसी गीत की कोई कम्पोज़िशन ठीक से गाई नहीं जा रही तो वे गाकर बताने लगते कि इस पंक्ति को यूँ नहीं ...ऐसे गाया गया है और आप भी ऐसे ही गाइये. साज़िन्दों से लय बढ़ती जा रही हो तो तुरंत रोक कर कहेंगे..दादा प्लीज़ थोड़ा टेम्पो बढ़ाइये न....कभी कोई पीस की-बोर्ड पर बजाया जा रहा हो तो वे रोक कर मेंडोलिन वाले वादक से कहने लगते...भैया...इसे आप उठाइये न. अन्नू भाई ने 100 गायक-गायिकाओं को तक़रीबन दो दिन सुना,गुना और उनके साथ गुनगुनाया. बाद में जो 24 कलाकार चुनें गए उनकी देर रात तक रिहर्सल करवाई.उन्हें तराशा और बार बार एक ही बात को बेहतर कहने के लिये प्यार से लताड़ा भी.

अन्नू कपूर एक ऐसा शख़्स है जिसे संगीत,शायरी,साहित्य और अभिनय घुट्टी में मिला है. वे अपनी स्वर्गीय पिता मदनलाल कपूर की नौटंकी में काम कर चुके हैं और मध्यप्रदेश,राजस्थान,बिहार, उ.प्र.के गाँव गाँव घूम चुके हैं. उन्हें हर अंचल के पहनावे,लोक-संगीत,भोजन और रीति-रिवाजों के साथ साथ ज़ुबान और लहजे का अच्छा ख़ासा ज्ञान है. वे सितारा होकर भी एक साधारण आदमी की तरह रहना पसंद करते हैं.उनके मन में देश हर वक़्त स्पंदित होता रहता है. हिन्दी चित्रपट गीतों के तो वे एनसायक्लोपीडिया कहे जा सकते हैं..कोई गीत गाइये...गीतकार का नाम पूछिये,संगीतकार का नाम पूछिये...वे फ़ट से बता देंगे....और यदि नहीं बता पाए तो आपसे जानना चाहेंगे कि सही क्या है. उनमें कुछ जानने और मालूम करने की करामाती जीजिविषा है...चाहना है जिज्ञासा है. उन्होंने बहुत संघर्ष किया है. संघर्ष आज भी है क्योंकि उनकी फ़ितरत का कलाकार बिक नहीं सकता. अन्नू कपूर के पास रहिये तो लगता है कोई लोकगीत गूँज उठा है, कोई कविता झर रही है,कोई अच्छा वाक़या जीवंत हो उठा है. अन्नू कपूर से मिलना कभी भी घाटे का सौदा नहीं है क्योंकि उनसे मिलने के बाद आप जितना जानते हैं,उसमें कुछ और इज़ाफ़ा हो जाता है.


(चित्र इन्दौर के ही कार्यक्रम का है और अन्नू कपूर के साथ माइक्रोफ़ोन पर है ख़ाकसार)