Sunday, September 30, 2012

कहानी के बिना नाटक की क़ाययाबी मुश्किल है



नाटक दर्शक के लिये किया जाता है;अपने लिये नहीं.यदि नाटक से स्टोरी एलिमेंट गुम है तो मेरा मानना है कि उसकी क़ामयाबी मुश्किल है.सितारे हों लेकिन  नाटक का कथानक कमज़ोर हो तो नाटक कैसे बचेगा.हिन्दी नाटक को ज़िन्दगी देने के लिये नये कलेवर के साथ स्क्रिप्ट्स लिखी जाना बेहद ज़रूरी  है.
बात हो रही है नादिरा ज़हीर बब्बर से जो अपने नाटक हम कहें-आप सुनें के मंचन के लिये इन्दौर तशरीफ़ लाईं हैं. नादिराजी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की ग्रेज्युएट हैं .उनके परिचय में ये भी एक महत्वपूर्ण है कि वे इप्टा और प्रगतिशील लेखक संघ के स्तंभ सज्जद ज़हीर की साहबज़ादी हैं. १९८१ में स्थापित रंग-समूह ‘एकजुट’ की संस्थापक नादिरा बब्बर अपनी तमाम व्यस्तताओं में से नाटक के लिये वक़्त निकालकर  अपनी रंगमंचीय प्रतिबध्दताओं का निर्वाह करतीं हैं.नादिरा आपा ने बताया कि ज़िन्दगी की बड़ी स्पेस टीवी और इंटरनेट द्वारा घेर लिये जाने के  बावजूद दर्शक सभागार में आ रहा है और नाटक का आनंद ले रहा है. नाटक एक टीम वर्क है और कलाकारों को मंच पर अभिनय करते देखने का जज़्बा अभी भी कम नहीं हुआ है. जब मैंने उनसे पूछा कि आगा ह्श्र मोहन राकेश,गिरीश कर्नाड,धर्मवीर भारती,सर्वेश्वरदयाल सक्सैना,मणि मधुकर,रेवतीशरण शर्मा और उर्मिलकुमार थपलियाल जैसे धाकड़ लेखकों की मौजूदगी के बाद भी हिन्दी नाटक वाले स्क्रिप्ट की रोना क्यों रोते रहते हैं नादिराजी  ने कहा कि बेशुमार स्क्रिप्टस का उपलब्ध होना एक बात है और एक निर्देशक का उसमें अपने नजरिये से मंचन की संभावना तलाशना दूसरी बात.उन्होंने कहा कि यह नाटक की ही ताक़त है जो मनोरंजन के साथ अभिनेताओं को बेहतर इंसान बनने की  असीम संभावनाओं से जोड़ती है,नाटक ही है जो सभागार के बाहर जा रहे दर्शक को एक न एक नसीहत या मशवरा ज़रूर देता है.


 नादिराजी ने ज़ोर देकर कहा कि थियेटर के लिये अब भी संभावनाएँ मरीं नहीं हैं.टीवी धारावाहिकों और फिल्मो  के लिये आज भी नाटक एक परफ़ेक्ट नर्सरी है.ये कलाकार को ही तय करना है कि वह किस सेगमेंट में कितना मसरूफ़ होना चाहता है. नादिरा खुद टीवी धारावाहिक और फिल्मों में काम कर चुकीं हैं लेकिन फिर भी जो आत्मसंतोष उन्हें रंगमंच से मिलता है वह बेजोड़ है.नादिराजी अब खुद भी नाटकों का इंतेख़ाब करतीं हैं.उनका नाटक हम कहें आप सुनें एक सतरंगी प्रस्तुति है जिसमें उन्होंने क़िस्सगोई,कथा,गप्पागोष्टी में छुपे इंसानी तकाज़ों को कथासूत्र में पिरोया है. हिन्दी रंगमंच के लिये हमेशा सकारात्मक सोच रखने वाली नादिरा ज़हीर बब्बर लेखक,अभिनेता और निर्देशक के रूप में बहुतेरी ज़िम्मेदारियों को बख़ूबी जीने वाली ज़िन्दादिल इंसान हैं. 

(ये साक्षात्कार नईदुनिया-लाइव इन्दौर में २९ सितम्बर को प्रकाशित हुआ)