Tuesday, August 24, 2010

ग़ज़ल की बात निकली और दूर तलक चली आई !


रफ़ी एक परफ़ेक्ट प्ले बैक सिंगर थे. उनकी आवाज़ में एक ख़ास तरह का बनाव था. मैंने सार्वजनिक रूप से सबसे पहले मोहम्मद रफ़ी का गीत “ओ दुनिया के रखवाले ‘गाया था. इन्दौर से उस्ताद अमीर ख़ाँ और लता मंगेशकर जैसे महान कलाकारो को परवाज़ मिली लेकिन मुझे इंतज़ार है कि और कोई एक नाम इस शहर से संगीतजगत में आना चाहिये.सुनने वालों के लिहाज़ से ये एक बड़ा प्यारा शहर है
ये बात ग़ज़ल गायक जगजीतसिंह ने एक ख़ास मुलाक़ात में की. गेरूए रंग की चैक्स की शर्ट पहने जगजीतजी आज बहुत तसल्ली से बतिया रहे थे. इसकी एक ख़ास वजह यह थी कि वे कंसर्ट के लिये नहीं सिर्फ़ अपने फ़ैन्स से रूबरू होने और फ़्यूज़न रफ़ी अवॉर्ड लेने इन्दौर तशरीफ़ लाए थे. बड़ी बेतक़ल्लुफ़ी और साफ़गोई से उन्होंने सारी बातें कहीं उन्होंने ये बता कर लगभग चौंका दिया कि करियर की शुरूआत में उन्होंने बतौर संगीतकार भी हाथ आज़माए थे और एक फ़िल्म की थी “अपनी धरती अपना देश” इस फ़िल्म के लिये उन्होंने रफ़ी साहब के साथ एक गाना रेकॉर्ड किया. जब भुगतान की बात आई तो रफ़ी साहब ने फ़ीस बताई चार हज़ार रुपये. इस फ़ीस में आधे चैक से मांगे और आधे नक़द. प्रोड्यूसर ने कहा रफ़ी साहब फ़िल्म का सेंट्रल आइडिया देशप्रेम है और रुपये नक़द मांग रहे हैं. रफ़ी साहब झेंप से गए और भोलेपन से बोले कोई बात नहीं जी पूरा चैक से दे दीजियेगा. जगजीतसिंह ने बताया कि रफ़ी एक परफ़ैक्ट प्लैबैक सिंगर थे.

ग़ज़ल का सिलसिला जहाँ रुका पड़ा है इस बात पर जगजीतजी ने कहा कि ये सब टीवी के कारण हो रहा है क्योंकि संगीत सुनने नहीं देखने की चीज़ होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि बरसों पहले मुझे लग गया था कि पारम्परिक साज़ों का आसरे ग़ज़ल नहीं बचेगी सो मैंने युवा कलाकारों की पूरी टीम लेकर ग़ज़ल गायकी को नई पैकिंग दी जो क़ामयाब रही. उन्होंने कहा कि रियलिटी शोज़ से पहचान तो मिलती है लेकिन उतनी जल्दी गुमनामी भी मिलती है. मूल चीज़ है शायरी और क्लासिकल म्युज़िक की समझ, जिसके बिना किसी रोशन मुस्तक़बिल की उम्मीद बेमानी है. उन्होंने कहा कि वे क़िस्मत को नहीं रियाज़ को कामयाबी का शर्तिया फ़ार्मूला मानते हैं. हाँ हर कलाकार की ज़िन्दगी में असफ़लता और अवसाद के क्षण आते हैं,मैं अपवाद नहीं , लेकिन मैंने अपनी ज़िन्दगी की ज़रूरतों को इस तरह समझ रखा है कि कभी भी भी किसी तरह की मुश्किल पेश नहीं आती. उन्होंने कहा कि वे जल्द ही राजस्थानी और पंजाबी लोक-संगीत को लेकर श्रोताओं से रुबरू होंगे.



जगजीतसिंह जब बतिया रहे थे तो लग नहीं रहा था कि दुनिया का सबसे क़ामयाब गुलूकार बोल रहा है. उनकी बातों में और तेवर में ख़ास क़िस्म की स्पष्टता थी जिससे ज़ाहिर हो रहा थी कि ये कलाकार अपने काम के प्रति कितना समर्पित है. उन्होंने कहा कि ग़ज़ल गायकी में लफ़्ज़ की अहमियत कभी कम नहीं होगी. मैं ख़ुद अपना प्रतिस्पर्धी हूँ. मैं कुछ आवाज़ों को तराश रहा हूँ और मोहम्मद वक़ील जैसे युवा कलाकारों से मुझे उम्मीद है लेकिन इस तरह की आवाज़ों को कमर्शियल अवसर नहीं मिलते तो ये लोग संगीत को अपना करियर कैसे बनाएंगे. जगजीतसिंह ने कहा कि ग़ज़ल गाने के लिये शास्त्रीय संगीत और शायरी से राब्ता करना पड़ेगा .उसके बग़ैर ग़ज़ल कैसे बचेगी,सँवरेगी . उन्होंने कहा कि अब ज़िन्दगी कुछ इतनी तल्ख़ और तेज़ रफ़्तार हो गई है कि परिवारों में संगीत,चित्रकारी,नाटक और कविता का वातावरण ही नहीं रहा है. अब सब चाहते हैं जल्द से जल्द क़ामयाब हो जाएँ,पैसा कमाएँ.



शाम ढल रही थी और जगजीतसिंह सम्मान समारोह में जाने की तैयारी मे थी.बड़े से चश्मे से झाँकती बड़ी,गहरी और उनकी पनीली आँखों से झर रहे अहसास से महसूस हो रहा था मानो सुरों का यह शहंशाह किसी नई ग़ज़ल का इंतेख़ाब कर रहा है.....बात वाक़ई दूर तलक चली आई....



(२२ अगस्त तो फ़्यूज़न इंटरटेनमेंट के मौक़े पर आयोजित फ़्यूज़न रफ़ी अवॉर्ड लेने जगजीतसिंह इन्दौर आए थे और ये बातचीत उसी शाम मैंने अग्रणी समाचार पत्र नईदुनिया के लिये की थी जो २३ अगस्त के अंक में प्रकाशित हुई. इस शो को मैंने एंकर किया था और यह तस्वीर कार्यक्रम के पहले संगीतकार मित्र विवेक ऋषि ने ली है)

आइये लगे हाथ ख़ुमार बाराबंकी की लिखी नज़्म बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी सुनना चाहें तो मुलाहिज़ा फ़रमाएँ.



Khumaar - 02 - Baat Niklegi To Phir Door Talak Jayegi .mp3
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