Sunday, October 14, 2012

फ़िल्म बनाने वालों का मक़सद पैसा है; पैशन नहीं



सुफ़ैद क़मीज़ ,ट्रेवलर्स जैकेट और जीन्स पहने ये शख़्स आपसे बतियाते नहीं थकता.आपके पास वक़्त की कमी है तो उठ जाइये वरना सलीम ख़ान के पास बातों का ज़खीरा है.इन्दौर के ओल्ड पलासिया इलाक़े और अपने भाई नईम ख़ान के घर के बरामदे में संवाद और पटकथा के शहंशाह बेतल्लुफ़ बैठे हैं और मिलने वालों का रेला लगा है.उन्हें  क्रिश्चियन कॉलेज के सन सैंतालीस का वह सोवेनियर दिखाया जा रहा है जिसमें आभासकुमार गाँगुली (किशोर कुमार) की तस्वीर शाया हुई है.कलाप्रेमी राजेश खण्डेलवाल हैं जिन पर सलीम साहब का बड़ा दिल है.आलोक सेठी की नई किताब ‘माँ तुझे सलाम’ की एक प्रति उन्हें भेंट करता हूँ जिसे सलीम साहब ने बड़े एहतराम से क़ुबूल  किया है.एक और भाई हैं जो सलीम साहब के बचपन के साथी है और इसरार कर रहे हैं कि उनके पास एक कहानी है ज़रा सुन लीजिये.सलीम साहब जवाब देते हैं मेरे पास पन्द्रह-बीस हैं कोई लेवाल नहीं.फिज़ाँ में ठहाका गूँज जाता है.धूप तेज़ है और चुभने वाली गर्मी भी लेकिन किशोर कुमार सम्मान लेने के लिये खण्डवा जाने से पहले इन्दौर तशरीफ़ लाए सलीम ख़ान को अपने घर के बरामदे में पैर फ़ैला कर बैठने  और कुनबे से मिलने से बड़ा इनाम-इ़क़राम और कुछ नज़र नहीं आ रहा.भीतर से इसरार आ रहा है कि खाना खा लीजिये पर सलीम ख़ान कहते हैं भाई आप तो बातचीत चलने दीजिये.सत्तर के पास आ गये हैं लेकिन चेहरे की चमड़ी न केवल धूप के कारण चमक रही है बल्कि उस क़ामयाबी की दास्तान भी कह रही है जिससे सलीम-जावेद की जोड़ी ने फिल्मों की चमकती दुनिया में ऐसी बुलन्दी हासिल की थी जो बाद में किसी और को मिली नहीं.
बातचीत शुरु हुई है तो  कह्ते हैं भाई अब फिल्मी दुनिया वैसी रही नहीं जैसी उसकी पहचान थी. शशधर मुखर्जी,के.आसिफ़,मेहबूब ख़ान,गुरूदत्त,राजकपूर,देवानंद ने फिल्में पैशन के लिये बनाई  न कि पैसे के लिये. काम में झोंक के रखते ये लोग अपने आपको और तस्वीर का फ़ैसला देखनेवालों पर छोड़ते थे. सेठ चंदूलाल शाह को जब फिल्मों में बड़ा नुकसान हुआ तो बिना कोई तनाव किये स्टुडियो की चाबी सौंपकर बाहर हो गये.इस बात को सलीम साहब ज़रूर दोहराते हैं कि बड़ा आदमी वह है जिसके दोस्त और नौकर कभी न बदलते हों. वे फख्र से कहते हैं कॉलेज के ज़माने से आज तक सारे दोस्तों के संपर्क में हूँ और उसमें अपनी फिल्मी दुनिया की हलचल बीच में नहीं आने देता.इन्दौर को याद करें सलीम  ख़ान तो क्रिकेट का वो मेयार याद आता है जब सी.के.नायडू,मुश्ताक अली,हीरालाल गायकवाड़,चंदू सर्वटे,भाऊ निंबालकर जैसे सितारे यशवंत क्लब और जिमखाना की रौनक़ होते थे. हम तो अपने ऐसे महान खिलाड़ियों के मारे शाट्स से बाउण्ड्री लाइन के बाहर से उठा कर लाने में ही निहाल हो जाते थे.दोपहर बाद सम्मान समारोह के लिये कार से खंडवा निकलने की बात चली है सो बातों का सिलसिला थम गया है. 
इस बीच हेलनजी बाहर आ गई हैं और उनके चटख़ रंग से बाहर की कड़ी धूप अब कुछ ख़ूबसूरत महसूस होने लगी है. चेहरे पर बच्चे सी मुस्कुराहट है गोया अपने सलीम की क़ामयाबी  से बहुत खु़श नज़र आ रहीं हैं सबका सलाम क़ुबूल करतीं हैं और हमारे साथ तस्वीर खिंचवाने के लिये राज़ी हो जाती हैं.चाँदी होते बालों पर सुनहरी रंग क़यामत ढा रहा है और ख़ान कम्पाउण्ड में मौजूद हर शख़्स महसूस कर रहा है कि हेलनजी की ख़ूबसूरती और फ़िटनेस के आगे उम्र पानी भर रही है.सलीम साहब से मिलने के बाद दिल-दिमाग़ में एक बात साफ़ हो गई है कि इस  इंसान के लिये क़ामयाबी मामूली चीज़ है.वह अपने सिर पर सेलिब्रिटी का वज़न ढोकर चलना पसंद नहीं करता..उसके लिये रिश्ते,इंसानी तकाज़े और जज़्बात ज़्यादा क़ीमती हैं.इसीलिये सलीम ख़ान का किरदार भी किसी उपन्यास के मानिंद है जिसका हर पन्ना आपको रोमांच से भर देता है. ज़िन्दादिली नाम की कल्ट मूवी का अज़ीम किरदार हैं सलीम ख़ान