Sunday, March 29, 2009
चिट्ठी का जवाब तत्काल से पहले देने वाले बालकवि बैरागी.
वैसे उनसे कम ही मिलना होता है क्योंकि वे ठहरे यायावर-कवि.कभी यहाँ कभी वहाँ.वे मेरे मालवा के हैं और मेरे घर के बुज़ुर्ग लगते हैं.सरस्वती हमेशा से उन पर मेहरबान रही है. वे हैं देश के जाने माने कवि श्री बालकवि बैरागी. हम उन्हें प्यार से दादा बालकविजी कहते हैं और मैं तो उन्हें काका साब कहता हूँ.एक पोस्ट में दादा पर लिखना टेड़ी खीर है.सो मुख़्तसर में ही बात कहना चाहूँगा.
दादा के बारे में ख़ास बात यह है कि उनके जैसा पत्र-व्यवहार करने वाला व्यक्ति मैंने अपने जीवन में नहीं देखा. मैं सालों तक उनसे चिट्ठी-पत्री के ज़रिये ही सम्पर्क में बना रहा. हालाँकि वे मेरे कवि पिता श्री नरहरि पटेल के युवा दिनों के अनन्य मित्र रहे हैं लेकिन मेरा उनसे सम्पर्क अपनी फ़ितरत से ही बना. और इस फ़ितरत का नाम चिट्ठी लिखना है. मुझे भी ख़तोकिताबत में मज़ा आता है और दादा तो सो समझिये चिट्ठी लिखनेवालों के आराध्य हैं. वे देर रात कविता पढ्कर यात्रा करें,संसद के सत्र से थक कर लौटे हों,अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों से मेल-मुलाक़ात में मसरूफ़ रहे हों या परिवार की किसी ज़िम्मेदारी का निर्वाह कर रहे हों वे आपकी चिट्ठी बाँचने और फ़िर उसका तत्काल जवाब देने में ज़रा भी देर नहीं करते.आप यक़ीन करें लेकिन यह सच है कि जिन दिनों दादा संसद सदस्य के रूप में दिल्ली में बसे थे तब सप्ताहांत में एक व्यक्ति ख़ासतौर पर दादा के नाम आई चिट्ठियों का बोरा लेकर दिल्ली पहुँचता था.
वे हाथ से ही पत्र लिखते हैं,उनका सुलेख इतना सुन्दर है कि काग़ज़ पर उनके हरूफ़ मोती जैसे दमकते हैं.बरसों से अंतर्देशीय पत्र में दीपावली शुभकामनास्वरूप एक नई कविता अपने परिजनों,काव्यप्रेमियों और कवि-साहित्यकार मित्रों को लिखते रहे हैं.मज़ा ये कि हर बार कविता का उन्वान दीया ही होता है और कविता या गीत का कोण सर्वथा नया होता है.वे खादी ही पहनते हैं और ज़िन्दगी की तमाम क़ामयाबियों के बावजूद उन्होंने अपनी पारम्परिक वेषभूषा धोती-कुर्ते को ही अपना स्थायी ड्रेसकोड या परिधान बना रखता है. कम लोगों को ये बात मालूम है कि आज श्रीमती सोनिया गाँधी की हिन्दी में जो थोड़ी बहुत भी रवानी सुनाई देती है उसमें दादा बालकविजी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
डायरी लिखने के मामले में भी वे अत्यंत नियमित रहे हैं और छोटी से छोटी बात को अपनी डायरी में दर्ज़ करना नहीं भूलते यथा आज सुबह जल्दी उठा लेकिन योगाभ्यास नहीं किया या आज डॉ.वैदिक (पत्रकार श्री वेदप्रताप वैदिक)आए थे और मेरे लिये कुर्ते का नया कपड़ा लाए.भोपाल के दुष्यंतकुमार संग्रहालय ने बालकवि की डायरी नाम से उनकी डायरी को प्रकाशित भी किया है. यदि उसके पन्ने पलटें तो पाएंगे कि उसमें बहुत मामूली बातें नोट की गईं हैं लेकिन बड़ी बात ये है कि नियमपूर्वक लिखीं गईं हैं.आप हम जानते ही हैं कि किसी बड़ी घटना को डायरी में लिखेंगे ऐसा सोच कर कितने बरसों तक हमारी डायरिया कोरी की कोरी या नई नकोरी ही रह जाती हैं.
दादा बालकविजी को विचलित देखना शायद ही किसी को नसीब हुआ हो. हाँ वे अपने माता-पिता की बात कर ज़रूर भावुक हो जाते हैं . (उन्होंने अपने आशियाने का नाम धापूधाम रखा है;उनकी वात्सल्यमयी माँ धापूबाई के नाम) दादा बेसाख़्ता ठहाके के मालिक हैं.सुर उनके गले में फ़बता है. उन्हें आप किसी भी कवि के बात पढ़वा लीजिये , वे अपनी कहन से मंच लूट लेते हैं.मालवी में अपनी काव्य-यात्रा शुरू करने वाले दादा बालकविजी आज माँ हिन्दी के वरेण्य सपूत हैं.उन्होंने बहुत ग़रीबी और बेहाली देखी है. मंगते से मंत्री तक शीर्षक की अपनी आत्मकथा में दादा ने नि:संकोच लिखा है कि मैंने भीख मांग कर अपने जीवन की शुरूआत की. वे डॉ.शिवमंगल सिंह सुमन के प्रति हमेशा आदर से भरे रहते हैं और कहते हैं कि सुमनजी की कृपा से बैरागी कुछ बन पाया. दादा की सबसे बड़ी बात है कि वे अपने गुरूजनों और वरिष्ठों के प्रति हमेशा कृतज्ञ बने रहते हैं.
वे आजकल नीमच में रहते हैं और ग्रामीण परिवेश में ही अपने आप को सबसे ज़्यादा आनंदित पाते हैं.मंच पर कविता पढ़ रहे हों,पत्र का जवाब दे रहे हों,रेशमा शेरा के लिये तू चंदा मैं चांदनी जैसा कालजयी चित्रपट गीत रच रहे हों या संसदीय समिति की बैठक में शिरक़त कर रहें हों वे अपना मालवी ठाठ नहीं छोड़ते.पिचहत्तर पार के दादा बेतहाशा यात्राएं करते हैं,सड़क से,हवाई जहाज़ से,रेल से लेकिन उनके कंठ में एक खाँटी इंसान हमेशा ज़िन्दा रहता है.
एक मुलाक़ात की पहली पोस्ट दादा बालकवि बैरागी के नाम कर मैं ही उपकृत महसूस कर रहा हूँ...मुलाक़ातें जारी रहेंगी.
हाँ यदि आप मेरी बात की पुष्टि करना चाहें तो लिख डाले एक चिट्ठी दादा के नाम...पता नोट करें
श्री बालकवि बैरागी
धापूधाम,169,डॉ.पुखराज वर्मा मार्ग,नीमच-458551
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
sanjay jee ,
ReplyDeleteabhee main itnaa paripakva nahin hoon ki aapkee lekhanee par kuchh comment kar sakun bas itna hee ki aapse bahut kuchh seekha jaa sakta hai aur meri koshish jaaree rahegee. waise patra ka jawab to door patra likhe wale hee nahin hain ab.
बहुत बढ़िया लेख… सादगी और विनम्रता से रहने वाले लोग सदा ही आकर्षित करते हैं…
ReplyDeleteसंजय दा,
ReplyDeleteआपका लिखा पढ़कर हमेशा ही अच्छा लगता है|
सुन्दर हस्तलिपि और पत्र लेखन के साथ साथ बैरागी जी की विनम्रता के बारे में जानकार उनके प्रति आदर और बढ़ गया है |
कृपया समय निकाल कर मुलाक़ात पर अवश्य लिखते रहें |
अपनी बाल्यावस्था में कोटा (राजस्थान) में जाना हुआ था। वहाँ पर एक बार कवि सम्मेलन में तथा उसके बाद शायद कानपुर में भी 1-2 बार कवि सम्मेलन में सुना था। बहुत तो नहीँ याद रहा, हाँ इतना याद अभी तक बना है कि उन्होंने वीर रस की कविताएं सुनायीं थी... शायद सरकारी तंत्र पर भी वे कहने में चूकते नहीँ थे उन दिनों और उनकी काव्य पाठ की ऊर्जा और तेज अभी तक विस्मृत नहीँ हुआ है। उनके काव्य पाठ में उन दिनों सिंह जैसी गर्जना सुनी थी हमने। उन दिनों के बाद उनका राजनीति में भी प्रवेश याद है। आशा है कि हमारी स्मृति में सही छवि है।
ReplyDeleteआपका लिखा हमेशा मन भाता है...बालकवि बैरागीजी के बारे मे पढकर उनकी सादगी प्रभावित कर गई.
ReplyDeleteदादा से अनेक बार मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वे वास्तव में विलक्षण व्यक्तित्व हैं।
ReplyDeleteबहुत आत्मीय और भरपूर मुलाकात कराई आपने. शुक्राना.
ReplyDeleteदेश के प्रसिद्ध कवि के रूप में तो बैरागी जी से परिचित थे पर आज उनके व्यक्तित्व की भि जानकारी मिली। आभार।
ReplyDeleteनिस्सन्देह बहुत ही सुन्दर प्रयास है। अंग्रेजी कहावत है - अच्छी शुरुआत याने आधा काम तो हो ही गया। दादा से की गई आपकी शुरुआत प्रत्येक पडाव पर न केवल यादगार बनेगी अपितु हम पढने वालों को भी मालामाल करेगी।
ReplyDeleteयदि आपके लिए सम्भव हो और आप उचित समझें तो कृपया अपने ब्लाग से 'वर्ड वेरीफिकेशन' वाला प्रावधान तत्काल हटाने पर विचार करें।
पहली मुलाक़ात पर आप सभी से मिले प्रतिसाद के प्रति आभारी हूँ.कोशिश रहेगी ये सफर जारी रहे.वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा दिया है जी.
ReplyDeleteBal kavi se judi bachpan ki ek badi mazedaar ghtna hai,Gaon me touring theater me baal kvi ke kavitaon ki film dehithi main bada prabhvit tha oske baad garmi ki chhuttiyna bitane apne dadihaal Depalpur (Badagaon)me tha us vaquat baal kavi ki film Raani ore lalpari depalper ke ek godam numa talkies me lagi thi, main film dekhne ko bada utsuk tha sham ko Safed kurta paajama ore nai chamde ki chappal pahan kar bada itrata hua film dekhne jaraha tha utaar par paer fisla ore sidha naali me gira saare kapde kichhad me lath path...ghar vapas ghar ponhcha nahahya .. haath me zabar dast dard shuru ho gaya mere dada ek haddi jodne vale ke paas lekar gaye, unhone khinch taan kar haat sidha kiya, aamba haldi ka pultis baandha,tin char roz me haath thik hua to film dekhne haath par patta baandh kar fir ponhcha .
ReplyDeleteNaee shuruvaat ke liye sanjay bhai aap ko khoob saari shubhkamnaye
bahut subder blog likha hai aur iski shuruaat dada se hui.dada se is nimaanee ki mulakat mandsaur me hui thi. unhe lekar apne blog ki shuruaat ki, badhai.
ReplyDeleteDear Sanjay,
ReplyDeleteOf being Indore, am quite familier with You while reading news about Programmes you compared and articles of yours in Dailies. It is nice to wrire you about a Lovely Mulaquaat with Shri Balkavi Bairagee Ji.
Please do keep it up.
Cheers!!!
Mukesh Kumar Tiwari
नये ब्लोग के लिये स्वागत. ऐसी मुलाकातों का जीवन में बडा मोल है, अगर हम उनसे उनकी सादगी से कुछ सीख ले सकें.वैसे आपका ये कार्य तो वाल्मिकी जैसा है.
ReplyDeleteन बिसराने वाली विभूतियों से मिलाने वाले नये चिट्ठे की शुरुआत के लिए बधाई । सातत्य रहे ।
ReplyDeleteसादगी और विनम्रता से भरा व्यक्तित्व सदैव आकर्षित करता है ....
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आपने अपनी मुलाकात और खतोकिताबत को बहुत सुन्दर, रमणीय तरीके से उतारा है. सरह और सहज भाषा में लिखा आपका पोस्ट आनंद देता है और बाल कवी जी के बारे में उनके व्यक्तित्व के बारे में जानने का मौका देता है.
ReplyDeleteआभार एक बेहतरीन आलेख प्रस्तुत करनेके लिये
ReplyDelete-आदरणीय बैरागी जी को,
मेरे नमन कहियेगा