Saturday, September 11, 2010

उसके सुर में आ समाता है कुमार गायकी का रंग


बस कोई तीन चार बरस का था और बुआ ने एक टॉय हारमोनियम लाकर दे दिया. कुछ बाल कविताएं और राष्ट्रगान उस बाजे के साथ बजाता रहा-गाता रहा . बाद में सात बरस की उम्र में पुणे में दत्त जयंती पर एक प्रस्तुति हुई जिसके बाद मेरी माँ को लगा कि मुझमें एक कलाकार मौजूद है जिसे सही गुरू की ज़रूरत है. माँ का यह पूर्वानुमान ही मेरी क़ामयाबी की पहली सीढ़ी है क्योंकि यदि उसने मुझमें छुपे गायक को नहीं पहचाना होता तो पुष्कर लेले आपसे आज बात नहीं कर रहा होता.
बहरहाल हम पुष्कर लेले आ जाते हैं. पुष्कर लेले संगीताकाश पर तेज़ी से उभरता एक ऐसा नाम है जिससे आप बात करें तो लग जाता है कि आप आने वाले बीस-पच्चीस बरस बाद के उस सितारे से बात कर रहे हैं जो क्लासिकल मौसीक़ी का स्वर-सारथी होगा.बेहद सादा और स्टारडम से परहेज़ रखने वाले पुष्कर को पहले गुरू के रूप में पं. गंगाधर बुआ पिंपलपुरे मिले जिन्होंने इस कलाकार को शास्त्र से समृध्द किया. बाद में पं.कुमार गंधर्व के ही सुशिष्य पं.विजय सरदेशमुख और पं.सत्यशील देशपांडे ने पुष्कर की गायकी को मांजा.
मेरा सवाल था;कुमार गंधर्व की गायन शैली में ऐसा क्या था जो आपको लगा कि मुझे ऐसा ही गाना है. पुष्कर लेले बोले कि उस गायकी में शास्त्र के अलावा कुमारजी की मौलिकता भी शुमार थी. कुमारजी का गायन अनुसरण करना कठिन है ही उसे सुनना और समझना और ज़्यादा भी मुश्किल. लेकिन मुझे मेरे गले की आवाज़ से ज़्यादा मुझे मेरे मन की आवाज़ सुनाई दी जो बार बार कुमारमय हो रही थी. क्या आपको सुनते वक़्त लोग कुमारजी से आपकी तुलना नहीं करते होंगे.पुष्कर का जवाब था कि हाँ करते होंगे लेकिन मुझे मालूम है कि सिर्फ़ कुमार जैसा गाने से कुमार गंधर्व नहीं बन सकूंगा...मुझे कुमार-गायन के तमाम अहसास को अपने भीतर तलाशना है. गाते-गाते यह तलाश प्रतिदिन और प्रत्येक कंसर्ट में होती है;और आगे भी जारी रहेगी.और जैसे जैसे कुमार शैली को लोग सराहते हैं तो निश्चित रूप से कुमार जी का ही सुयश है लेकिन मुझे बार बार ये दाद यह याद भी दिलाती है कि मुझे अंतत: श्रोताओं के बीच पुष्कर लेले को स्थापित करना होगा. यूँ देखा जाए तो शास्त्रीय संगीत गाना एक तरह से सुरों की आस को अपने भीतर तलाशना ही तो है फ़िर वो चाहे कुमारजी के ज़रिये हो या किसी और के.


क्लासिकल म्युज़िक के रियलिटी शोज़ हो सकते हैं क्या. पुष्कर ने कहा हाँ हो सकते हैं लेकिन उसे अच्छी टीआरपी मिले इसमें शक है. मुश्किल ये है कि आज का दौर देखने का है,सुनने का नहीं.यह पूछने पर कि क़ामयाबी के लिये आज का कलाकार बेसब्र और बेचैन क्यों है ;पुष्कर ने कहा कि आज का क्यों, गुज़रे दौर का या हमारे वरिष्ठ कलाकार भी हैं.जो लोग एक प्रोफ़ेशनल सिंगर की तरह शास्त्रीय संगीत को करियर बनाते हैं उन्हें अपने अस्तित्व के लिये मशक्क़त तो करनी ही है.


गोरे-चिट्टे और गहरी भूरी आँखों वाले पुष्कर लेले बतियाते हुए बहुत जीवंत थे और लग रहा था कि इन गुज़रे दस-बारह बरसों में ये कलाकार बहुत तेज़ी अपनी मंज़िल की ओर अग्रसर है. इन्दौर में हुई मुलाक़ात के दौरान इस कुमार-गायक का आत्मविश्वास कह रहा है कि उसकी तैयारी शानदार है और वह आने वाले समय में अपने कंठ की कारीगिरी से सुनकारों को निश्चित ही चौंकाएगा.

3 comments:

  1. आजकल गायक गले से नही दिमाग़ से गाते हैं, क्योंकि दिल से गाने केलिये समय लगता है.

    बात गलत बिल्कुल नही है. विशेषतयः शास्त्रीय संगीत में.

    इस कुमार गायक को उसकी मंज़िल जल्दी ही मिलेगी, निसंशय...

    ReplyDelete
  2. aisi pratibhaon ka ghor akaal padne vaala hai aane vaale dinon men !har koi apne bachche se adhik se adhik dhan kamaane ki apeksha rakhta hai,chaahe yah kisi keemat par ho !

    ReplyDelete

रोशनी है आपकी टिप्पणी...