सुयश,सफलता और लोकप्रियता के लिये रियाज,गुरू
सान्निध्य और भाग्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है पूर्व जन्मों का सिंचित पुण्य जो
मुझे हर वक्त यह स्मरण दिलवाता है कि किसी खास उद्देश्य से मेरे हाथ से संतूर बज
रहा है. इन्दौर के उस्ताद अमीर खाँ साहब भी इसी रास्ते के पथिक थे.उनकी गायकी में
छुपी अलौकिकता उसी सिंचित पुण्य की वजह से श्रोता को एक रूहानियत का अहसास देती
है.
आज इन्दौर पहुँचे पद्मविभूषण पं.शिवकुमार शर्मा
ने सिटी लाइव से हुई बातचीत में ये विचार व्यक्त किये.उन्होंने कहा जब कलाकार ये
सोचने लगता है कि ये काम मैं कर रहा हूँ तो समझ लीजिये उसका पराभव सुनिश्चित है.
मैंने कई काबिल कलाकारों को इस आत्ममुग्धता में जीते और उसके बाद संगीत परिदृश्य
से खारिज होते देखा है. रियाज बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन मैं उसे एक मशीनी
प्रक्रिया की तरह नहीं लेता.एक समय था जब मैं भी आठ-दस घंटे जमकर तैयारी करता था
लेकिन अब इतना वक्त ही नहीं मिलता फिर भी एक से डेढ़ घंटा तो अपने साज के साथ
बिताता ही हूँ.ये पूछने पर कि आपकी तंदुरूस्ती और तरोताजा रहने का राज क्या है
पण्डितजी ने ठहाका लगाते हुए कहा सिर्फ और सिर्फ संतूर.भारत की संसद के साठ वर्ष
होने के मौके पर शिवजी ने संसद के केन्द्रीय कक्ष में संतूर वादन पेश किया था और
वह उनके संतूर के साथ की कला यात्रा का भी साठवाँ बरस था.इन्दौर आते आते उन्हें
पचास बरस हो गये हैं और यहाँ अभिनव कला समाज के मंच पर बजाई महफिलें आज भी मानस
में बनी हुई हैं.वह दौर कुछ और ही था.तीन- तीन दिन इन्दौर में रहना होता था और देर
रात सराफे में जाकर गराडू और जलेबी का मजा लिया जाता था.अब लाइफ स्टाइल बदल गया
है.
फिल्म संगीतकार के रूप में हमारी जोड़ी शिव-हरि
ने यशराज चोपड़ा के साथ काम सिर्फ अपनी अटूट दोस्ती के कारण किया था. एक बेहतरीन
समझ और तालमेल था उनके साथ. उन जैसे
निर्माता - निर्देशक कम ही हैं जो हमारी तबियत से काम करने दें.इसलिये हमने
सोचा बेहतर है कि हम अपना मनचाहा काम शास्त्रीय संगीत के मंच पर ही करें.
(ये मुलाक़ात २ अक्टूबर को इन्दौर के होटल रेडिसन में हुई थी जब पण्डितजी समाजसेवी श्री बाबूलालजी बाहेती की जयंती की पूर्व संध्या को मेरे शहर में आए थे.३ अक्टूबर को पण्डितजी ने स्थानीय अभय प्रशाल में संतूर वादन पेश किया.ये बातचीत नईदुनिया में प्रकाशित हुई)
छायाकार : अंकित गोयल
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