Thursday, June 18, 2009

ट्वेंटी-20 के लिये भी चुन लिये जाते केप्टन मुश्ताक़ अली !


आज (18जून) जब ट्वेंटी-ट्वेंटी क्रिकेट के सेमीफ़ायनल प्रारंभ हो रहे है तो केप्टन मुश्ताक़ अली याद कुछ ज़्यादा ही आ रही है. एक तो आज उनकी चौथी बरसी है और मन में यह विचार उमड़-घुमड़ रहा है कि काश मुश्ताक़ साहब यदि आज भी खेल रहे होते तो क्रिकेट के इस नये फ़ॉरमेट में भी फ़िट होते और भारतीय टीम की नुमाइंदगी ज़रूर कर रहे होते.उनके स्टाइल में एक ऐसी रवानी थी कि वे टेस्ट हो या वन डे या आजकल का ट्वेंटी-ट्वेंटी;हर जगह अपनी ख़ास मौजूदगी दर्ज़ करवाते.हम इन्दौरवासियों को उस्ताद अमीर ख़ाँ,मक़बूल फ़िदा हुसैन,लता मंगेशकर,कर्नल सी.के.नायडू,राजेन्द्र माथुर के साथ जिस शख़्स के अपना कहने बहुत फ़ख्र हासिल है उसमें केप्टन मुश्ताक़ अली का नाम भी बहुत इज़्ज़त से शुमार है.आज़ादी से पहले इन्दौर के होल्कर क्रिकेट टीम की तूँती पूरे देश में बोलती थी और केप्टन मुश्ताक़ अली उसके एक ख़ास सितारे थे. एक मुलाक़ात पर आज मुश्ताक़ साहब की एक अहम याद.


वो एक बरसाती दिन था और क्वालिस में सवार मुश्ताक़ साहब, सुशील दोशी और मैं इन्दौर से उज्जैन के सफ़र में थे। उज्जैन में हिन्दी समाचार पत्र नईदुनिया द्वारा पाठकों के लिए विश्व कप क्रिकेट के बाद आयोजित प्रतियोगिता के ख़ास मेहमान के रूप में मुश्ताक़ साहब और सुशीलजी आमंत्रित थे। मुझे कार्यक्रम को एंकर करना था.उज्जैन रवानगी से पहले ठीक वक़्त पर अपना चिर-परिचित नीला ब्लेज़र पहने मुश्ताक़ साहब पारसी मोहल्ले स्थित घर के बरामदे में एकदम चाक-चौबंद तैयार थे। उन्होंने वहॉं पं. नेहरू के साथ अपना चित्र दिखाकर मुझसे पूछा - क्या आप जानते हैं पं. नेहरू और मुझमें क्या समानता है ? मैंने मना किया, उन्होंने बताया - ये देश के ओपनिंग प्रधानमंत्री हैं, मैं ओपनिंग बैट्समैन। इनका रेकॉर्ड भी नहीं तोड़ा जा सकता और न मेरा। इनके पहले तो अब कोई देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले संभव नहीं और विदेशी धरती पर मेरे पहले अब कोई शतक मारे यह भी संभव नहीं। इस लिहाज़ से मेरे व पंडितजी के रेकॉर्ड अनब्रेकेबल हैं।

हास्य अभिनेता जॉनी वाकर के गुज़र जाने पर हमारी सांस्कतिक संस्था श्रोता बिरादरी के आयोजन में भी मुश्ताक़ साहब पधारे और जॉनी भाई की यादों को ताज़ा किया। बिना किसी ना-नुकुर के वे बिरादरी की बिछात पर बैठे, बतियाए। वे जब भी मुंबई जाते, जॉनी वाकर साहब के मेहमान ज़रूर होते। इन्दौर के कई आयोजनों में उनसे मुलाक़ात होती थी और उनकी फ़िटनेस देखकर लगता था कि इनसे कम से कम स्वास्थ्य के मामले में कुछ सीखना चाहिए। बरसों तक उन्हें नियमित रूप से इन्दौर के रेसीडेंसी इलाक़े में शाम ढले सैर करते देखा जाता रहा.

नईदुनिया के ही एक आयोजन में अभिनय सम्राट दिलीप कुमार कैप्टन मुश्ताक़ अली को प्रेक्षकों में देखकर अभिभूत हो गए थे। जिस सुपर स्टार को देखने के लिए नईदुनिया प्रांगण में हज़ारों लोग विचलित थे, सुनहरी परदे सुपर स्टार क्रिकेट के सुपर स्टार मुश्ताक़ साहब को देखकर अपने आपको रोक नहीं पाया एवं मंच से उतरकर उनसे गले मिला गले मिला। उस कार्यक्रम की सदारत राज्यसभा की उप-सभापति नजमा हेपतुल्ला कर रहीं थी लेकिन दिलीप साहब ने अपने संबोधन की शुरूआत “मोस्ट रिस्पेक्टेड केप्टन मुश्ताक़ अली” . दो-तीन बरस पहले वरिष्ठ पत्रकार श्री जवाहरलाल राठौर के अमृत महोत्सव में लोकसभा स्पीकर श्री सोमनाथ चटर्जी को स्मृति चिह्न देने मुश्ताक़ साहब को मंच पर बुलाया गया तो सोमनाथ दा इस अवसर पर चमत्कृत-से थे।

नई पीढ़ी को यदि मुश्ताक़ साहब के स्टाइल की बानगी का अहसास करना है तो यह मान कर चलिये कि विवियन रिचर्ड्स से लेकर क्रिस गैल, हर्शल गिब्स,सचिन तेंदूलकर,सनथ जयसूर्या,शाहिद अफ़रीदी,वीरेंद्र सहवाग तक ये सभी खिलाड़ी मुश्ताक़ अली शैली का ट्रेलर भर हैं..कैप्टन मुश्ताक अली उनके खेल के साथ उनकी शराफ़त के लिए भी याद किए जाएँगे। शहर इन्दौर का पता देने वाले इस महान खिलाड़ी को को चौथी बरसी पर ख़िराजे अक़ीदत.

2 comments:

  1. संजय भाई,
    कैप्टन साहब कई बार नेहरू स्टेडियम वॉक करने के लिये आते थे (आजकल का पता नहीं पर तब गर्मी की छुट्टियों में नेहरू स्टेडियम बच्चों और युवाओं से खचाखच भरा होता था) उन सालों में जब ज़रा अधिक उम्र के लडके उन्हें ससम्मान नमस्ते कर रहे होते तो बच्चे इनके बारे में उत्सुकता जागती - कौन हैं वो?

    वे सही मायनों में गर्व करने लायक इन्दौरवासी थे - उन अन्य इन्दौर में पैदा हुई हस्तियों से अलग जिन्होंने मुम्बई को अपनी कर्मभूमी बनाया और मुंबईकर कहलाने में ज्यादा गर्व महसूस करते हैं - उन सभी को मैं भी अपनी व्यक्तिगत द ग्रेट इन्दौरीज़ लिस्ट मे शामिल नहीं करता.

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  2. कैप्टन मुश्ताक अली जी को मेरा भी सलाम ! इत्तिफाकन उनके निधन के वक्त दादा ( श्री राजसिँह जी ) मेरे घर पधारे थे और कई जगहोँ से फोन आये वहाँ अपनी प्रतिक्रिया बतला रहे थे - यादेँ रह जातीँ हैँ बस और ऐसे उम्दा इन्सान चले जाते हैँ -
    आशा है , आपका स्वास्थ्य अब बेहतर हो रहा है सँजय भाई -
    स्नेह सहित,
    - लावण्या

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