Friday, April 24, 2009
अशोक चक्रधर ; शब्द का चितेरा;कविता का दिव्य-स्वर
अभी पिछले हफ़्ते ही की बात है कि हिन्दी कविता के नामचीन हस्ताक्षर अशोक चक्रधर को अपने नगर न्योतने का मौक़ा मिला. सुनता तो उन्हें अस्सी के दशक की शुरूआत से ही आया था और एक दो अवसरों पर मिला भी लेकिन चूँकि इस बार मेज़बान का हक़ अदा करना था सो नज़दीक़ी कुछ ज़्यादा रही. सच कहूँ अशोक चक्रधर एक मंचीय हास्य कवि से कहीं ऊपर की शख़्सियत हैं.जिस तरह का जीवन वे जीते हैं उसमें क़ामयाबी,पैसा,शोहरत और प्रचार बड़ी मामूली चीज़ें हैं.कारण यह कि अशोकजी ने जीवन के यथार्थ को भोगा है और बहुत संघर्ष कर वे आज इस मुकाम तक पहुँचे हैं. वाणी का विलास देखना हो अशोक चक्रधर से मिलिये,कविता का शिल्प देखना हो अशोक चक्रधर से मिलिये,वाकपटुता देखनी हो तो अशोक चक्रधर से मिलिये,सादगी देखनी हो तो अशोक चक्रधर से मिलिये,सब जानने के बाद भी विद्यार्थी कैसे बना रहा जाता है यह जानना हो तो अशोक चक्रधर से मिलिये, कवि होते हुए प्रबंधकीय कौशल कैसे हासिल करना यह जानना हो तो अशोक चक्रधर से मिलिये,कविता के अलावा चित्रकारी,साहित्य,कहानी,पत्रकारिता,फ़ोटोग्राफ़ी,नृत्य,संगीत,लोक-संगीत,रंगकर्म,प्रसारण,प्राध्यापन की इतर विधाओं के बारे में भी कैसे रूचि रखी जाती है और इन सब का उपयोग अपनी ज़िन्दगी को क़ामयाब बनाने के लिये कैसे किया जाता है ये जानना हो तो अशोक चक्रधर से मिलिये. आप सोच रहे होंगे कि मैंने इतनी बार अशोक चक्रधर का नाम दोहराया क्यों.देखिये मैं हूँ विज्ञापन की दुनिया का आदमी.अपनी स्क्रिप्ट (जिसे इश्तेहार की तकनीकी भाषा में कॉपी कहा जाता है)में जितनी बार अपना ब्राँडनेम शुमार करूंगा,वज़न बढ़ेगा. ये तो मज़ाक़ की बात हो गई,मैं क्या अशोक चक्रधर नाम के ब्राँड को प्रमोट करूंगा. लेकिन हाँ ये ज़रूर कहूँगा कि अशोक चक्रधर निश्चित रूप से एक क़ामयाब ब्राँड हैं.बल्कि वे हमारी माँ हिन्दी के ब्राँड एम्बेसेडर हैं.वे जिस सादी भाषा में बतियाते हैं,कविता लिखते हैं और अपने आप को व्यक्त करते हैं वही सच्ची हिन्दी है. उनके बोलने में अमीर ख़ुसरो सुनाई देते हैं.तुलसी,बिहारी,मीरा,सूर से लेकर काका हाथरसी,गोपाल व्यास और शरद जोशी सुनाई देते हैं.अशोक चक्रधर में हिन्दी कविता बोलती सुनाई देती है.
अशोक चक्रधर की सबसे बड़ी ख़ासियत है उनकी जीवंतता. उसमें समोया हुआ निश्छल ठहाका.निराभिमानी इंसान जो हर वक़्त आपसे बातें करते हुए कविता की एक नई इबारत गढ़ लेता है. मानसिक चैतन्यता और स्मृति ऐसी कमाल की कि आपसे बीस-तीस साल बाद भी मिलें तो कोई संदर्भ तलाश ही लें.वे साठ के पास आते आते भी नये ज़माने की तकनीक से बाख़बर रहते हैं.हिन्दी यूनिकोड के लिये उन्होंने ख़ासी मशक़्कत की है. अशोक चक्रधर इंटरनेट पर एक बड़ी उपस्थिति हैं.वे प्रतिपल अपने को अपडेट रखते हैं.अशोक भाई इस बार नई-नकोरी संस्था मोरपंख के न्योते पर काव्य-पाठ के लिये इन्दौर (22 अप्रैल 2009) आए थे? प्रसंग था श्री श्याम शर्मा द्वारा हिन्दी सुलेख की पुस्तिका तुरंत सीखो;सुन्दर लिखो के विमोचन का. इस बार के इंदौर प्रवास के पहले मैंने अशोक भाई से पिगडम्बर स्थित लता-दीनानाथ मंगेशकर ग्रामोफ़ोन रेकॉर्ड संग्रहालय देखने का आग्रह किया था. कवि-सम्मेलन ख़त्म होने के बाद खाना खाया और सोते सोते लगभग दो बज गए लेकिन अशोक भाई को याद था कि पिगडम्बर चलना है.वे सुबह सात बजे अपनी सहचरी वागेश्वरीजी के साथ होटल की लॉबी में तैयार मिले.मेरे शहर इन्दौर से तक़रीबन बीस किलोमीटर दूर है सुमन चौरसिया स्थापित मंगेशकर संग्रहालय. कार से जब पहुँचे सुमन भाई के ख़ज़ाने से रूबरू हो चक्रधर दम्पत्ति तो अभिभूत हो गए. इन्हीं लोगो ने ले लीन्हा दुपट्टा मेरा को जब फ़िल्म पाक़ीज़ा के अलावा सुमन भाई दीगर कई आवाज़ों में सुनाया तो अशोक भाई वाह वाह कर उठे. राधे ना बोले ना बोले ना बोले रे को लता मंगेशकर की आवाज़ में तो कई बार सुना था वागेश्वरीजी ने लेकिन संगीतकार सी.रामचंद्र की आवाज़ के रेकॉर्ड किये हुए एक प्रायवेट कार्यक्रम का सीडी जब सुमन भाई ने सुनवाया तो हम सबजैसे स्तब्ध से थे. आज जय हो को लेकर चुनाव प्रचार अभियान में ख़ूब शोर मचा हुआ है. सुमन भाई ने चुनाव प्रचार के कई एल.पी रेकॉर्ड अशोक जी को सुनवाए और चौंका दिया .क्या गुज़रे ज़माने में भी संगीतमय प्रचार हुआ करता था.
अपनी बात ख़त्म करूं उसके पहले ये भी कहता चलूँ कि अशोक चक्रधर के कंठ में कविता और शब्द आकर निहाल से हो जाते हैं. मंच पर अपनी बात कहते हुए उन्हें किसी अतिरिक्त पराक्रम की आवश्यकता नहीं होती.वे गुफ़्तगू करते हुए ही आपको ठहाका लगवा दें,कब रूला दें,कब चौका दें और कब वाह लूट लें ; वे जब मंच पर होते हैं तो तनाव तिरोहित हो जाता है और श्रोता के मन का आनंदभाव अपने शीर्ष पर होता है.सुननेवाले और आयोजक के इर्द-गिर्द मौजूद माहौल से वे इतनी सारी बातें पिक-अप कर लेते हैं कि आपके पास चकित होने के अलावा और कोई चारा नहीं होता. श्लील हास्य और उस पर तारी होता अशोक चक्रधर का निश्कपट संवाद...क्या बात है !
ये बताने का मक़सद सिर्फ़ इतना सा कि बीती रात की थकान के बावजूद अशोक चक्रधर ने किसी नये कौतुक को जानने और समझने के लिये समय निकाला. पिगडम्बर के पास ही महू पहुँचे,वागेश्वरीजी को ख़रीदी करवाई और हमारे साथी राजेश खण्डेलवाल के आग्रह पर महू के ख्यात चित्रकार दिव्यकांत द्विवेदी के काम को भी निहारा. विश्व-भर में चर्चा में रहने वाले इन्दौरी नाश्ते के व्यंजन पोहे की फ़रमाइश की और सपत्नीक उसक लुत्फ़ भी उठाया.
अशोक चक्रधर पर एक मुलाक़ात की ये पोस्ट इसलिये लिख गया क्योंकि एक सेलिब्रिटि होते हुए भी इस समर्थ कवि ने अपने भीतर के सामान्य इंसान को ज़िन्दा रखा है. मुझे तक़रीबन हर हफ़्ते किसी न किसी सितारा व्यकित्व से मिलने का अवसर आता ही रहता है लेकिन बिरले ही होते हैं जो ज़मीन से कटते नहीं. अशोक चक्रधर नामवर होते हुए भी सरल-सहज हैं और ऐसा बने रहने में आनंदित रहते हैं.उनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है.समझा सकता है . मैने भी सीखा..आपको मौक़ा मिले तो मत चूकियेगा;
अशोक चक्रधर परिवेश,परम्परा और प्रगति के सजग पहरूए हैं
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achha hai.. kai nayi chhije janne ko mili.
ReplyDeleteअशोक चक्रधर जी से मैं भी बहुत प्रभावित हूँ । मैं उनको जामिया मिल्लिया के वक्त से जानता हूँ । आपने उनके बारे में और अधिक जानकारी दी, पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteधन्यवाद
इन्दोर मे हुए उस कार्य्क्रम मे मुझे अशोक जी को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ . उन्हे सुन कर बडा अच्छा लगा.
ReplyDeleteAskoji ko sunkar laga ki kahne ka tarika kitna saral hona chahiye.
ReplyDeletePigdamber yatra padkar laga hum bhi humsafar the ashokji aur aap ke saath.
Apne likha hamari mulakat ho gaye
बढिया है जी ।
ReplyDeleteआपके इस ठिकाने पर आज पहली बार आ पाए ।
अच्छा लगा ।
पिगडंबर तो हमें भी आना है । देखिए कब आना हो पाता है ।