Sunday, April 17, 2011

ज्ञान की गंगा में नहाय लिया;मन में मैल ज़रा न रहा !


मैं तो विलोम में जीता हूँ.शुरूआत ही अवरोह से हुई थी तो ज़िन्दगी में अब आरोह ही आरोह है लेकिन मन तलाशता है कबीर और उन जैसे दरवेशों और सूफ़ियों के आस्तानों को.बस इसी तलाश में मालवा के इस प्यारे गाँव लूनियाखेड़ी चला आया हूँ. मुम्बइया ग्लैमर और चकाचौंध से परे राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित मक्सी के निकट बसे कबीरनगर(लूनियाखेड़ी) में बात हो रही है आवाज़ की दुनिया के अलबेले गायक कैलाश खेर से. वे पद्मश्री प्रहलादसिंह टिपानिया के बुलावे पर शनिवार को यहाँ पहुँचे.उल्लेखनीय है कि १७ अप्रैल २०११ से सदगुरू स्मारक सेवा शोध संस्थान,लूनियाखेड़ी की मिजवानी में मालवा कबीर यात्रा का शुभारंभ होने जा रहा है जो २४ अप्रैल को इन्दौर में आयोजित समागम में समाप्त होगी.
कैलाश भाई के रोम-रोम में सूफ़ियाना तबियत का अहसासा होता है. वे चमक-दमक की दुनिया में रहते हुए भी मिट्टी से अपना सरोकार नहीं तजते.वे कहते हैं जो ज्ञान की गंगा में नहाय लिया;उस मन में मैल ज़रा न रहा.

कैलाश खेर टिपानियाजी के मुरीद हैं और कहते हैं कि कबीरबानी का ये फ़कीर आज यह की जिन ऊँचाइयों पर पहुँचा है उसका राज़ इनकी(प्रहलादसिंहजी की) सादगी और साधना है. मालवी पदों से कबीरी रंग छलकाने वाले और पद्मश्री से इसी बरस सम्मानित हुए टिपानियाजी के इस सादे किंतु प्रेम भरे आतिथ्य पर कैलाश खेर कुरबान से हुए जाते हैं. यही वजह है कि वे अपनी पत्नी शीतल और बेटे कबीर को भी लुनियाखेड़ी साथ लाए हैं.वे कहते हैं फ़िल्मों और स्टेज शोज़ में गाना मेरे लिये एक देवालय की तामीर है लेकिन लूनियाखेड़ी में आकर कबीरी भाव में हाज़री लगाना तो उस देवालय की मिट्टी बन जाना है. मैं यहाँ गाने नहीं,कबीरी रस के सच्चे और खरे सेवकों के चरणों की धूलि अपने माथे पर चढ़ाने आया हूँ.अगर गाने का मन भी हुआ तो श्रोताओं को नहीं इस प्यारे गाँव के गाय-बछड़ों,लहलहाते खेतों-खलिहानों को सुनाऊँगा.मैं तो यहाँ  रूहानी तरंगों का रस लूटने आया हूँ क्योंकि यहाँ शहरी प्रपंच नहीं है.

कैलाश खेर जब बोल रहे थे तो लग रहा था कबीरी चादर ओढे़ एक सूफ़ी से बात हो रही है. न मंचीय लटका झटका , न फ़िल्मी दुनिया का नख़रा. दिल से दिल की बात करने वाले कैलाश बोले ज़िन्दगी में विपरीत को गले लगाना सीख लिया तो मेरे दाता ने सुप्रीत अपने आप मुहैया करवा दी है. कैलाश खेर बोले न मैं किसी देवी-देवता को मानता हूँ न कर्मकाण्ड में यक़ीन करता हूँ. मैं तो आंतरिक प्रकाश की तलाश का यात्री हूँ और संगीत मेरे लिये उसका रास्ता सहज बनाता है.कैलाश खेर यानी संगीत का प्यासा एक जोगी जो मन के इकतारे पर अलख जगाता मालवा में आ गया है.

11 comments:

  1. बहुत ही सुन्‍दर। लगा, मैं आप दोनों की बातें सुन रहा हूँ। सहज।

    ReplyDelete
  2. उस सूफ़ी आवाज़ के तो हम दीवाने है...बहुत बढिया परिचय..आभार

    ReplyDelete
  3. दिसंबर २०१० में मैं इंदौर में था - और लता मंगेशकर अलंकरण समारोह में कैलाश खेर जी को सुनने का सुभाग्या प्राप्त हुआ. कितना रोमांचक और सुखद अनुभव था वह , मैं बता नहीं सकता. उनके वाणी में आध्यात्म है और उनकी प्रस्तुति में विशेष ऊर्जा जिसने हज़ारों shrotaaoN को एक कड़ी में जोड़ दिया उस रात.

    ReplyDelete
  4. bahut sunder aapke lekha se laga ki hum bhi whi hey.................kya baat wah

    ReplyDelete
  5. बहुत उम्दा... एक खूबसूरत मुलाक़ात का बहुत ही ख़ूबसूरत बखान । सच मज़ा आ गया पढ़ कर...

    ReplyDelete
  6. sanjay ji
    aapka prhalad ji ke goan me pahunchna aur fie kailash kher ki jubani bahti sarswati ki wani ka live lekh pad kar laga ki ek acchi dawat se vanchit rah gaye .par apki lekhni wo kami puri kar di.keep it up

    ReplyDelete
  7. हार्दिक आभार आप सभी का.

    ReplyDelete
  8. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  9. Sanjay bhai, anand aa gayaa aap ka article padh kar. aise lagaa maano hum bhi mumbai se udkar Luniakhedi pahuch gaye hai. aap bhagyashaali jo aap is sant milan ke sakshi bane.... ashutosh deshmukh

    ReplyDelete
  10. Dil ko chhoo gayi ye mulakat ki baat. aur Kailash kher ke liye man mein izzat aur badh gayi

    ReplyDelete
  11. ek safar hai aapke sabdon se mulakaat karke ...mere man ka bahot koob

    ReplyDelete

रोशनी है आपकी टिप्पणी...