Monday, December 19, 2011

तुमने दी आवाज़ लो मैं आ गया !

मेरी ज़िन्दगी में संगीत से पहले पेंटिंग आ गई. गायक न बनता तो मुसव्विर होता. लेकिन आज भी कैनवस पर ख़ासा समय बिता रहा हूँ. हाल ही मैंने सलमान ख़ान को उनकी फ़िल्म दबंग का पोर्ट्रेट बना कर दिया है.किसी ज़माने में दो से आठ रूपये में वडोदरा में चित्र बना कर कमा लेता था और उससे अपनी पॉकेट मनी निकाल लेता था.

बता रहे हैं नामचीन गायक शब्बीर कुमार और यक़ीन नहीं हो रहा कि एक सफल गायक कभी एक बेजोड़ पेंटर भी रहा होगा.आपको याद होगा कि सनी देओल-अमृता सिंह अभिनीत फ़िल्म बेताब के सभी गीतों में शब्बीर कुमार की आवाज़ जलवागर हुई थी. शब्बीर भाई ने बताया कि फ़िल्म कुली के गीत पहले रेकॉर्ड हो गये थे लेकिन अमिताभ बच्चन के शूटिंग के दौरान घायल हो जाने पर फ़िल्म देर से प्रदर्शित हुई.आर.डी.बर्मन को बेताब ने फ़िर से चोटी पर पहुँचा दिया था और मेरी आवाज़ भी घर-घर में पहचान पा गई थी.

सन १९८१ में मुम्बई आने के पहले शब्बीर कुमार वडोदरा में सैकडों शो करने वाले आर्केस्ट्रा को बहुत सफलतापूर्वक चला रहे थे.किस्मत ने साथ दिया और आते ही कई बड़े संगीतकारों ने मुझे मौक़े दिये. लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने कुली के सभी गाने गवाए. आर.डी.बर्मन,बप्पी लहरी और अन्नू मलिक के साथ भी कई फ़िल्में कीं.नई आवाज़ के रूप में ख़ैयाम साहब ने मुझसे चार रचनाएँ गवाईं.लताजी के साथ गाना किसी भी आर्टिस्ट के लिये ज़िन्दगी का सबसे बड़ा ईनाम हो सकता है जो मुझे भी मिला.ज़माना जानता है कि शब्बीरकुमार की आवाज़ पर मोहम्मद रफ़ी की स्पष्ट छाप है और इसे ये कलाकार विनम्रता से स्वीकार भी करता है. शब्बीर भाई ने बताया कि रफ़ी साहब तो मेरे लिये ख़ुदा हैं. आज भी स्टेज शोज में मसरूफ़ इस कलाकार की यह बात मन को बहुत छू गई कि किशोर दा,रफ़ी साहब,मुकेशजी,मन्ना दा,लताजी और आशाजी तो हम गाने वालों के लिये एक तरह के घराने हैं. इस बात को कुबूल करने में कोई संकोच और झिझक नहीं कि कहीं न कहीं इन सर्वकालिक महान आवाज़ों से ही हमने गाना सीखा  और ये ही आवाज़े और फ़नक़ार हमारे लिये एक विश्व-विद्यालय रहे हैं.आज सुरीले नग्में क्यों नहीं बन रहे हैं ? पूछने पर वे बोले फ़िल्मी गीत की ख़ासियत होते हैं शब्द और अब न वैसे शायर हैं न कवि जिन्हें फ़िल्म की सिचुएशन पर बात को कहने का माद्दा हो. आस रह जाती है गुलज़ार और जावेद अख़्तर से जो आज भी इस शोर के अंधेरे में एक उम्मीद की किरण हैं. रियलिटी की शुरूआत बहुत अच्छी है. यह आर्टिस्ट को शोहरत और पैसा दोनो दिलवाते हैं. शब्बीर कुमार ने बताया कि उनका बेटा दिलशाद भी गा रहा है उसने ए.आर.रहमान के लिये ब्लू में गाया है और फ़िल्म रावन में भी उसकी आवाज़ सुनाई दी है. आने वाले दिनों में एक रोमांटिक एलबम जारी हो रहा है और एक रूकी हुई फ़िल्म में अल्का याग्निक के साथ उनके कुछ गाने नये ज़माने के संगीत के स्टाइल में रेकॉर्ड हुए हैं. नई आवाज़ों के लिये कुछ टिप्स देंगे.शब्बीर कुमार ने बताया प्लैबैक सिंगिंग  अहसास की गायकी है. सबसे पहले शब्द की अहमियत को समझो,शायरी,कविता को समजो तो जानोगे कैसे अच्छा गया जाता है.इन्दौर पहले भी आया हूँ और चूँकि वरोदरा का रहने वाला हूँ तो ये शहर और यहाँ की तहज़ीब मुझे अपनापा देती है. 

1 comment:

  1. tumse milkar na jane kyoon aur bhi kuchh yaad aata hai---shabbeer, mahaan rafi ke abhaav ki ek vinamr poorti hain.unke indore aagman par unse lee gai bhentvaarta aapki sachet qualam ki khoobsoorat hai.

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