Wednesday, May 4, 2011

अदाकारों की भीड़ में अलग नज़र आनेवाला चेहरा !

कला फ़िल्मों में ऐसा बहुत कुछ रचा गया है जो साधारण है और कमर्शियल सिनेमा में ऐसा बहुत कुछ उत्कृष्ट है जो असाधारण है.सच कहूँ हर फ़िल्म को तो कमर्शियल होना ही पड़ता है क्योंकि उसी फ़िल्म की उम्र सफलता तय होती है. मेरा रोल फ़िल्म में छोटा है या बड़ा ये महत्वपूर्ण नहीं;मेरे लिये अहमियत है किरदार की;क्योंकि वही है जो मुझे दर्शकों के दिल में जगह देता है.मुझसे रूबरू हैं जानेमाने अभिनेता पवन मल्होत्रा . उन्होंने  बताया कि अभिनय का कोई ख़ास माहौल घर में नहीं था बस दिल्ली में एक दोस्त के इसरार पर  शुरू हो रहे नाटक तुग़लक में काम करने चला गया और नाटक से मुहब्बत हो गई. १९८५ में फ़िल्मों में काम करने के मकसद से मुम्बई आना हुआ और सईद अख़्तर मिर्ज़ा के बहु-चर्चित धारावाहिक नुक्कड़ में काम मिला और इसी धारावाहिक ने पवन के लिये फ़िल्म्स और धारावाहिकों के रास्ते खोल दिये. १९८९ आते आते पवन को बाघ बहादुर और सलीम लंगड़े पर मत रो जैसे क़ामयाब और चर्चित फ़िल्में मिलीं जिन्हें न केवल सराहना मिली बल्कि राष्ट्रीय सम्मानों से भी इन तस्वीरों को नवाज़ा गया. २००३ में तेलगु फ़िल्म आइथे और २००४ में टाइगर मेनन के किरदार को जीवन्त करती फ़िल्म ब्लैक फ़्राइड़े ने पवन को अभिनय जगत में एक स्थाई पहचान दी और एक ऐसे अभिनेता के रूप में स्थापित कर दिया जो अदाकारों की भीड़ में अलग नज़र आने वाला चेहरा कहलाया. पवन मल्होत्रा को छोटे पर्दे पर देखिये या बड़े पर्दे पर वे हमेशा अपने किरदार में डूबे हुए नज़र आते हैं अपने ज़बरदस्त होमवर्क से उन्हें मिली स्पेस का सार्थक उपयोग करते हैं. किसी भी कैरेक्टर को मेनेरिज़्म देने में भी वे बेजोड़ हैं . रोड़ टू संगम में किया गया मौलवी का रोल देखने के बाद यक़ीन नहीं आता कि वे पवन मल्होत्रा हैं. उन्होंने मौलवी के रूप में अपने संवादों को कुछ ऐसा चबा और घुमा कर बोला है जो उस किरदार के इरादतन ठसके को स्टैबलिश करता है. ऋषिकेश मुखर्जी और लेख टण्डन जैसे रचनाशील निर्देशकों के साथ काम करने के अनुभव को पवन जीवन की एक बड़ी कमाई मानते हैं और कहते हैं कि एक अभिनेता की गढ़ावन में अच्छे लोगों का साथ मिलना बहुत अहम है. इस मामले में वे अपने आपको ख़ुशक़िस्मत मानते हैं और ख़ास तौर पर सईद अख़्तर मिर्ज़ा,बुध्ददेव दासगुप्ता,श्याम बेनेगल,दीपा मेहता,गौतम घोष जैसे बेजोड़  फ़िल्मकारों का नाम रेखांकित करने से नहीं चूकते.पवन मल्होत्रा कहते हैं कि अपनी शर्तों पर काम करता हूँ ऐसा कहना दंभ को अभिव्यक्त करता है क्योंकि हक़ीक़त यह है कि इंडस्ट्री में हर शख़्स काम के लिये आया है और हर एक को शाम होते ही एक बिल पे करना है. मुम्बई में यदि रहना है इस हक़ीक़त से बाख़बर रहना बहुत ज़रूरी है. हाँ काम लेने के मामले में ज़रा नख़रा ज़रूर करता हूँ क्योंकि मानता हूँ कि मुझे अपने आपको व्यक्त करने का बेहतरीन मौक़ा ये फ़िल्म या धारावाहिक दे रहा है. क्योंकि अदाकारी और मज़दूरी में ज़रा फ़र्क़ है. पवन मल्होत्रा दिलीप कुमार, शम्मी कपूर और अमिताभ बच्चन की अदाकारी में बहुत सचाई नज़र आती है और वे मानते हैं कि अमजद ख़ान, अमरीश पुरी और परेश रावल हमारे बहुत अंडर-रेटेड आर्टिस्ट हैं.अमजद ख़ान की बहुमुखी प्रतिभा को विशेष रूप से याद करते हुए पवन मल्होत्रा कहते हैं कि शोले के गब्बर सिंह का रोल करने के बाद शतरंज के खिलाड़ी में वाजिद अली शाह और लव स्टोरी,रूदाली और कुरबानी के जुदा जुदा कैनवस पर अमजद ख़ान का होना किसी कलाकार की वर्सेटिलिटी की शिनाख़्त करता है. माय नेम इज़ एंथोनी गोंज़ाल्विस,डॉन-२,विकृत जैसी फ़िल्मों में अपनी बेजोड़ अदाकारी का लोहा मनवा चुके पवन मल्होत्रा अपनी नई फ़िल्म भिंडी बाज़ार को लेकर बहुत आशान्वित हैं .. उनकी पत्नी अपर्णा का रिश्ता उज्जैन से रहा है और  वे फ़िल्म शौर्य लिख चुकी हैं.दक्षिण भारत में अपने दमदार अभिनय से पवन मल्होत्रा एक मुकम्मिल पहचान रखते हैं. अपने बारे बहुत कम बोलने वाले पवन मल्होत्रा फ़िल्म इंडस्ट्री का ऐसा चेहरा है जिसका काम बोलता है.

No comments:

Post a Comment

रोशनी है आपकी टिप्पणी...